बलबीर एक मद्यमव वर्गी परिवार का लड़का था। उसके पिता जी गवर्मेन्ट स्कूल मे टीचर थे ,उसके २ भाई बेहन और थे।
पिता जी टीचर थे ,इसलिए पढ़ाई को लेकर सख्त थे। वे चाहते थे ,उनके बच्चे पढ़ लिख कर किसी गोवेर्मेंट ऑफिस मे लग जाये।
लेकिन बलबीर के सपने तो कुछ और थे। वो एक हॉकी प्लेयर बनना चाहता था ,और देश के लिए खेलना चाहता था।
इसी लिए उसका मन पढ़ाई मे कम और हॉकी मे ज्यादा लगता था।
पिता जी को हॉकी मे बच्चे का कोई भविष्य नहीं दिखता था। उनका तो बस एक ही सपना था ,उनके बच्चे पढ़ लिख कर गवर्मेंट जॉब करे।
इसी वजह से बलबीर की कम मार्क्स आने पर पिटाई भी होजाती थी।
समय का चक्का घूमता रहा ,बलबीर अब बड़ा हो चूका था ,लेकिन आज भी उसमे हॉकी की वही दीवानगी थी।
एक बार बलबीर को उसके दोस्त ने बताया की शहर मे हॉकी टीम का सेलेक्शन चल रहा है।
फिर क्या था ,बलबीर ने शहर जाने का फैसला का लिया। वो और उसके दोस्त दोनों शहर के लिए निकल पड़े ,और शहर जाने वाली बस के पीछे लटक गए। गांव से शहर कुल ६ से 7 घण्टे की दुरी पर था। बस का कंटक्टर बार -बार झुक कर चेक करता की कोई उसकी बस मे लटक कर फ्री मे सफर तो नहीं कर रहा।
लेकिन बलबीर और उसका दोस्त किसी तरह छुप जाते। जब बस किसी स्टॉप पे रुकने वाली होती ,तो वो पहले ही उतर जाते ,और बस के चलते ही भाग कर बस पे लटक जाते। इसी तरह बस पे लटकते हुए वो शहर पहुँच गए। शहर पहुँचने मे उन्हें देर शाम हो चुकी थी। दोनों के पास सिर्फ इतने पैसे थे ,जिससे वो किसी सस्ती जगह पे सो सके ,या कुछ खा सके। दोनों जवान थे इस लिए दोनों ने कुछ खाने का फैसला किया। लेकिन एक मुसीबत और थी ,जहाँ पे हॉकी टीम का सेलेक्शन होना था ,वो जगह वहाँ से दूर थी ,फिर दिन मे भी कुछ खाना था ,और लोट के अपने गांव भी जाना था ,दोनों दोस्त सोचने लगे। तभी बलबीर की नजर एक बूढ़े रिक्से वाले पे पड़ी। वो उसके पास गए और बोले। क्या आप मुझे आज रात का खाना खिला सकते हो।
रिक्से वाले ने उन्हें गौर से देखा और बोला –
भाई मैं तुम्हे खाना क्यों खिलाऊ ? और खाना खिलाता भी हूँ ,तो मुझे क्या फायदा होगा ?
बलबीर बोला –
मैं यहाँ हॉकी टीम मे सेलेक्शन के लिए आया हूँ। अगर मेरा सेलेक्शन हो गया तो मैं तुमसे मिलने आउगा।
रिक्से वाले ने बोला –
तुम्हे ऐसा क्यों लगता है ,की तुम्हारा सेलेक्शन हॉकी टीम मे हो जायेगा ?
बलबीर ने बोला -मुझे नहीं पता | लेकिन मेरा दिल कह रहा है ,मेरा सेलेक्शन जरूर हो जायेगा।
बलबीर की बात सुनकर रिक्से वाला मुस्करा देता है ,और दोनों को खाना खिलता है ,और अपने साथ फुटपाथ पे सोने की जगह भी देता है।
सुबह रिक्से वाले ने उन्हें नास्ता करा के अपने रिक्से पे बिठा कर स्टेडियम तक छोड़ कर आया।
इस बात को कुल ५ साल बीत चुके थे। बलबीर अब हॉकी टीम के कैप्टेन थे। उन्होंने ने देश को कई मैडल दिलाये। कई विज्ञापन भी किये और बहुत पैसे कामये। लेकिन उन्हें हमेसा उस रिक्से वाले की याद आती थी ,कैसे उसने उनकी मदद की। अगर वो न होता तो शायद बलबीर आज इस जगह पे न होते।
एक दिन बलबीर भेस बदल कर उस रिक्से वाले से मिलने गये। काफी गर्मी थी उस दिन। रिक्से वाला सवारी का इंतजार कर रहा था। और अपने गमछे से अपना पसीना पोछ रहा था। बलबीर उसके पास गये और उसे एक ठंडी बोतल पानी की दी। और बोले आप ने मुझे पहचाना ?
रिक्से वाले ने उन्हें देखा और पूछा तुम हॉकी टीम मे सेलेक्ट हो गये।
हाँ मैं हॉकी टीम सेलेक्ट होगया हूँ। और जैसा मैने वादा किया था। उसे निभाने के लिए मैं आप से मिलने आया हूँ। अगर आप ने उस दिन मेरी मदद न की होती तो आज मैं इस जगह ना होता।
चलिए खाना खाते है।
बलबीर उसे लेकर एक बड़े से होटल मे गया और खाना खाया।
और फिर रिक्से वाले को छोड़ने आया। ये खबर आग की तरह हर जगह फैल गई। लोग वहाँ इकठे होने लगे। लोगो ने बलबीर को कन्धे पे बिठा लिया। सब लोग बलबीर -बलबीर चिल्लाने लगे।
बलबीर ने कहा आप लोग यहाँ मुझसे मिलने आये है। लेकिन मैं यहाँ खुदा के एक मसीहा से मिलने आया हूँ। अगर वो न होते तो आज मैं कुछ ना होता।
जाते समय बलबीर रिक्से वाले को कुछ पैसे देने लगे।
तब रिक्से वाले ने कहा –
मुझे कुछ नहीं चाहिए ,मैने जब तुम्हारी मदद की तुम उस समय कुछ नहीं थे।
इसी तरह तुम भी किसी की मदद करना।
उनकी बाते बलबीर के दिल को छू गई। उन्होंने गरीब बचो के लिए फ्री हॉकी एकेडमी खोली। जिसमे गरीब बच्चे फ्री मे हॉकी सिख सकते थे।
आज भी बलबीर उस रिक्से वाले को भूल नहीं पाए।
रिक्से वाला एक दिल को छू लेने वाली कहानी

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